Monday, December 23, 2024

प्रभु प्रेम से जो सिंचित हों

 जीवन क्या है मानस पट पे घुमड़ घुमड़ के आते बादल

कभी खुशी के ये उजले बादलकभी गम के ये काले बादल।
कभी भावों से होकर बोझिल आँखों से बरसते बादल।
प्रभु ने सुंदर आकाश दिया मानस पट पे प्रकाश किया।
अहम् स्याही से मानुस ने बंजारों का विकास किया।
ये बंजारे कभी प्रीत सिखाते अपरिचित को मीत बनाते।
कभी मीत बन जाता दुश्मन कभी दुश्मन को प्रीत सिखाते।
जीवन के इस रंगमंच पर, हर बादल का एक भाव है,
कुछ बन अमृत उर भाते हैं, तो कुछ उर पर विष घाव है ।
तूने रचा यह खेल निराला, तू ही है इसका संचालक,
द्वेष अग्नि भी तू हीं देता, दया प्रेम भी तू उद्धारक।
प्रभु भावों के रूप अनगिनत भावों के अनगिनत बादल।
इन भावों के पार प्रभु तू बाधा तेरे ही निर्मित बादल।
मानस पट पर मेरी अपनी, छवि बसा दे जो निर्मल हो,
प्रभु तेरा आशीष रहे कि, तेरे प्रेम से ना वंचित हो।
मेरे उर को देना हीं तुझको, बादल ऐसे देना मुझको।
मानव दंष से जो वंचित हो, प्रभु प्रेम से जो सिंचित हों।

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