जब जब हमपे विपदा आती है, हम ईश्वर पे दोषारोपण करने लगते हैं।इस दुनिया में हरेक व्यक्ति को सुख और दुख दोनों से गुजरना होता है। ईश्वर की रचना में दुख उतना हीं महत्वपूर्ण स्थान है जितना कि आनन्द का। दुख एक व्यक्ति में परिपक्वता लाती है। ईश्वर की योजना में दुःख एक व्यक्ति के सर्वांगिण विकास के लिए बहुत जरूरी है। इसी लिए हम सबको सुख और दुख सम भाव से स्वीकारना चाहिए।ये गीत इसी भाव को रेखांकित करता है।
ख़ुदा की दवा को जफ़ा मानते हो,
है उसकी अता ये ना पहचानते हो।
ये उसकी नहीं बन्दे तेरी खता है,
ख़फ़ा है अकारण तुझे क्या पता है।
सजा है ये तेरी या तुझ पे भरोसा,
जाने ये कैसे क्या है तू ख़ुदा
सा?
क्या जाने खुदा की नई सी दुआ है,
तू नाहक समझता गलत सा हुआ है।
जब न रहेगा इस जग में अंधेरा,
जाने जग कैसे सूरज का बसेरा।
जब प्यूपा रगड़ता है खुद के बदन को,
तभी जाके पाता है, पूर्ण अपने तन को।
जो हल को न राजी, आकांक्षी
है छाया,
उन्हें तो बस मिलती है कोमल हीं
क्या।
गर तुझको मोहब्बत है खुद के ख़ुदा से,
तो लानत फिर कैसी शिकायत ख़ुदा
से?
है ठीक औ गलत क्या ये सब जानते हैं,
बामुश्क़िल हीं पर उसको पहचानते
हैं।
वो सृष्टि का कर्ता है सृष्टि का कारण,
करे कोई कैसे भी उसका निर्धारण?
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