जीवन ऊर्जा तो एक ही है, ये तुमपे कैसे खर्च करो।
या जीवन में अर्थ भरो या यूँ हीं इसको व्यर्थ करो।या मन में रखो हींन भाव और ईक्क्षित औरों पे प्रभाव,
भागो बंगला गाड़ी पीछे ,कभी ओहदा कुर्सी के नीचे,
या पोषित हृदय में संताप , या जीवन ग्रसित वेग ताप,
कभी ईर्ष्या, पीड़ा हो जलन, कभी घृणा की धधके अगन,
क्रोध अगन अनर्थ तजो ,जीवन ऊर्जा तो एक ही है,
या अर्थ करो या व्यर्थ करो ये तुमपे कैसे खर्च करो।
या लिखो गीत कोई कविता, निज हृदय प्रवाहित हो सरिता,
कोई चित्र रचो, संगीत रचो, कि कोई नृत्य कोई प्रीत रचो,
जीवन मे होती रहे आय,हो जीवन का ना ये पर्याय,
कि तुममे बसती है सृष्टी, हो सकती ईश्वर की भक्ति,
कभी ईश्वर यहाँ न आते हैं , कोई मार्ग बता न जाते हैं ,
तुमको हीं करने है उपाय, इस जीवन का क्या है पर्याय,
तुम हीं इसका निष्कर्ष रचो, जीवन ऊर्जा तो एक ही है,
कुछ अर्थ करो या व्यर्थ करो ये तुमपे कैसे खर्च करो।
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