मन के दर्पण
में प्रिये तुमको रोज निहारा करता हूँ।
हौले हौले
दिल में है प्रिये, रोज सँवारा करता हूँ ।।
चँदा दीखे
आकाश में तब कुमुदनी खिल जाती है
आती जब तू
याद तो हे प्रिये, दिल को खिलाया करता हूँ । मन
मँडराते
भौरे कलियों पर रोज दिवाना बनकर वे
सच्च कहूँ सपने
में मैं तुम पर मंडराया करता हूँ। मन
मछली जैसे
पानी बिना, है तड़प तड़प कर मरती वह,
तू मानो
अथवा मत मानो, तुम बिना मैं तड़पा करता हूँ। मन
ये शलभ दीये
से जल जाते, पागल बन रोज दिवाने ये,
हर क्षण हर
रोज तुम्हारे लिए, मैं दिल को जलाया करता हूँ। मन
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