Monday, December 23, 2024

बस फरक इस बात की

 

जीव तुझमें और जगत में,बस फरक इस बात की।

माँग तेरी क्या परम से , या कि दिन की ,रात की।
धूल का भी धर्म अपना , मोम का निज कर्म अपना।
जीव की भी राह अपनी , पर जगत का मर्म अपना।
या रहो तुम धुल बन कर ,कालिमा कढ़ते रहो।
या जलो तुम मोम बनकर , धवलिमा गढ़ते रहो।
कर्म का हीं खेल सारा , जो कि जीव शक्ति निखारे,
गर जगत की राह तत्पर , ईश की भक्ति को हारे ।
पर परिक्षण में हो जाए रत या कि उत्थान में।
क्या तुझे सृजन ही ईक्चित ,या माटी में हीं मिल जाना,
या कहीं खो धूल बन कर, या शिखा-सा जल जाना?
या निरिक्षण निज का हो चित ,रत रहे निज त्राण में।
माँग तेरी क्या परम से , या कि दिन की ,रात की।
जीव तुझमें और जगत में,बस फरक इस बात की।

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