Sunday, December 8, 2024

या जमाना लाएँ हम बलिदान से

 

आओ मित्रो ! नया जमाना लाएँ हम बलिदान से।

लूटे न कोई हम जनता को सिखा दें अपनी शान से ।

उठो जवानो! बढ़ो जवानो !

 

बड़े-बड़े धनसेठ यहाँ महलों में मौज उड़ाते हैं।

मिहनत कर जीने वालों को ये भूखे तड़पाते हैं।

दो नम्बर के धन्धों से रुपयों का ढेर लगाते हैं।

गोदामों में अन्न जमा कर मँहगी खूब बढ़ाते हैं।

पैरों से कुचलें हम इन मक्कारों को जी जान से ।

लूटे न कोई हम जनता को सिखा दें अपनी शान से ।

आओ मित्रों

 

इन नेताओं से हरदम हम खाते रहते ठोकर हैं।

ये लोग पाते वोट हमी से झूठा भाषण देकर हैं।

विजयी बनते जात-पात के नारे के ही बल पर ये।

कभी नहीं पर जनहित करते सही राह पर चलकर ये ।

अब हम इनकी कूटनीति को समझें अपने ज्ञान से ।

लटे न कोई हम जनता को सिखा दे अपनी शान से ।

 

ये अफसर भोली - भाली जनता को लुटने वाले हैं।

रिश्वत के पैसे खातिर हर पग पर झुकने वाले हैं।

तड़प रहे हम सब ये फिर भी ध्यान न देने वाले हैं

इन से मिलकर ही रहते सब काला धंधा वाले हैं।

रिश्वत खोरी बन्द करें निश्चय ही हिन्दुस्तान से ।

लूटे न कोइ हम जनता को सिखा दें अपनी शान से ।

आओ मित्रों

 

याद करें उन शहीद हुए आजादी के दीवानों को।

फाँसी के तख्ते पर झूले भगत सिंह के कामों को।

गोलियां खाकर स्वयं मरे 'आजाद, के अरमानों को।

"खून दो आजादी देंगे" के वक्ता के कामों को।

गोलियाँ चलती धाय-धाँय सब लड़ते थे जी जान से ।

लूटे न कोई हम जनता को सिखा दें अपनी शान से।

आओ मित्रो.

 

हम इन वीरों का सपना पूरा कर यहाँ दिखाएंगे।

भेदभाव को इस धरती से बिल्कुल यहाँ मिटाएँगे।

यदि देना हो खून तो हंसते-हंसते जान गंवाएँगे।

पर जो आग जला दी हमने उसको नहीं बुझाएँगे।

भारत माँ को सुखी बनाएंगे अपने बलिदान से।

लुटे न कोई हम जनता को सिखा दें अपनी शान से।

आओ मित्रो.....

 

 

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