Tuesday, December 17, 2024

क्या हूं मैं एक किरण चैतन्य के प्रकाश पर

 

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एक चित्रकार विविध रंगो का उपयोग कर कैनवास पर नाना प्रकार के चित्र बनाता है। चित्र बनाता भी है , तो जरूरत पड़ने पर मिटाता है। क्या हो अगर रंग खुद पर हीं नाज करने लगे? क्या हो अगर रंग स्वयं को हीं रचनाकार मानने लगे। मानव के साथ कुछ ऐसा हीं तो नहीं? ये असीमित ब्रह्मांड ईश्वर के अनंत कैनवास पर चित्रित की गई एक अतुलित रचना हीं तो है। मानव का वजूद एक रंग से ज्यादा हो भी क्या सकता है?फिर छोटी छोटी उपलब्धियों पर गुमान क्यों? छोटी छोटी असफलताओं पर निराशा क्यों?

क्या हूं मैं?

एक किरण ,
चैतन्य के प्रकाश पर,
बिखरी हई,
मात्र एक किरण।

क्या हूं मैं?

एक लहर,
परम ब्रह्म के,
असीमित सागर में,
बनती हुई,
मिटती हुई,
एक लहर।

क्या हूं मैं?

एक झोंका,
हवा का,
अनंत ईश्वर के,
आकाश में।

इतराती हुई,
बल खाती हुई,
मुस्कुराती हुई,
लहराती हुई,
ईठलाती हुई,
मिट जाती हुई।

एक हिस्सा,
अदना सा हिस्सा,
इस असीमित, अनंत,
आकाश का,
सागर का,
प्रकाश का।

अनजान,
इस बात से अनजान,
कि इन लहरों के,
झोकोँ के,
या किरणों के ,
बनने का या मिटने का।

ना तो हर्ष हीं मनाता है,
ये चैतन्य ,
ये सागर,
ये आकाश,
ये प्रकाश,
और ना शोक हीं।

अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित

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