ईश्वर क्या है एक संयोग ?, मानव प्रतिदिन करे ये शोध।
कर्म, धर्म, जप, भक्ति-योग, करे मंंत्र का भी उपयोग।
हठयोग का भी करे अभ्यास, कभी ध्यान से करे तलाश।
सुख की सतत, मनुज की प्यास, करवाती नित बड़े प्रयास।
तभी पूर्ण होती ये खोज, नर को होता जब ये बोध।
वही था ईश्वर, रहा अबोध, स्वयं ही बना रहा अवरोध।
नदी,नाले, पोखर, हर डग में, पशु, पंछी, कीट,वृक्ष, हर पग में।
अग्नि, वायु, तृण, जल, थल, मग में, श्वास, कान, आँख,हर रग में।
ज्ञानी-मानी, मंद ,मूर्ख और ठग में, कहाँ नही ईश्वर है जग में।
ईश्वर दिन है , ईश्वर रात, तुझमे मुझमे ईश्वर व्याप्त।
बुझती है ईश्वर की प्यास, नर को जब ये होता ज्ञात।
ईश्वर हर दिन, हर क्षण रोज, सबकुछ ईश्वर होता
बोध।
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