हिन्दू
मुस्लिम को अलग न बताया करो।
भारत माँ का
हृदय न रुलाया करो ।।
एक ही तन की
दो आँखे हैं जैसे प्रिय,
एक ही बगिया
में दो फूल सोहा करे ।
कोई सूखने
पर फूल, बाग सूना पड़े,
आँख फूटने
पर एक भी मन रोया करे ।
आँखों को
अलग अलग न बताया करो। भारत"
राणा ने घास
की रोटी खाई यहाँ,
हैदर, टीपू ने प्राण गँवाये जहाँ ।
यहीं तुलसी
की कविता सुनाई पड़ी,
कवि रहिमन
ने दोहे बनाये यहाँ ।
मजहब का न
झगड़ा लगाया करो। भारत..."
राम कहता
कोई, अल्हा बोलता कोई,
मंदिर-मस्जिद
दोनों ही श्रद्धा का सदन ।
कोई पढ़ता
नमाज, पूजा करता कोई,
दोनों अपित
हैं करते श्रद्धा के सुमन
मंदिर-मस्जिद
हैं अलग न सिखाया करो। भारत"
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