हे आगत हम
करते हैं स्वागत,
भाव है
लेकिन साधन नहीं है।
अभिनन्दन
करें हम सब कैसे,
श्रद्धा के
सिवा कुछ नहीं है।
एक ओर दिल
की सरिता में
लहरें हैं
उमंगो की उठतीं,
दूसरी ओर
साधनहीन हो
मन की
भावनाएँ हैं मिटतीं।
पर विदुरभाव
को कृष्ण बनकर
स्वीकारेगे
आशा यही है ।।
हे आगत..... ....
आप आये तो
आशाएँ सारी
सचमुच में
ही पूरी हुई है,
वर्षों की
संजोयी ईच्छाएँ
आप ही से तो
पूरी हुई हैं।
खोजते खोजते
इस जहाँ में,
मिल गये तो
स्वजन आप ही हैं ।
हे आगत
आपके लिए
ऊँची जगह है
नव्यागत
हृदय में हमारे,
यह कृत्रिम
भाव नहीं है
अन्तस्तल से
उपजा हमारे ।
आप भी भूखे
हैं भाव के ही,
आपकी यह
महत्ता बड़ी है ।।
हे आगत
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