Sunday, December 8, 2024

शदिया ना लिखल लिलार

 

शेर- घर - घर के बेटी सब रात दिन बिलखेली

अँखियन में आँसू भरी रात दिन सिसकेली ॥

'आशावादी' कहे कि दहेज कसाई बनल

घर-घर के धीया सब घट घट के जीयेली ।।

 

गीत- बिलखि बिलखि कहे माई से पुतरिया,

मोर मइया हो शदिया ना लिखल लिलार ।

 

देखिला कि बाबूजी के नींदिया हेराइल,

घूमत घ मत भाई के जूतवा खिया इल।।

छछनत हिया मोर, डहकेला जीया,

मोर मइया हो सगरों दहेज के बाजार । मोर

 

सोचिला कि बेटी काहे विधना वनवले ,

माई वाबू भाई खातिर आफत मॅँगवले ।

सोइरी में जनमते मोर नामबा बुताइत,

मोर मइया हो बाबुजो ना होइटे लाचार । मोर

 

बेटा बेटी ए के कोखिया से जनमावेली,

ए के कोखिया से माई दूधबा पियावेली ।

बाकिर काहे बेटिये के डहकेला जीया,

मोर मइया हो बेटिये के जिनगी अन्हार । मोर

 

श्री नाथ "आशावादी" धीया सब रोएली ,

बिलखेली वेटी सब सुसुकत जीएली ।

केह नाहीं बुझ ताटे धीया के दरदिया,

मोर मइया हो कब होईहैं धीया के उद्धार । मोर

 

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