Sunday, December 8, 2024

समाजोद्धार संघ के पथ पर

 

समाजोद्धार संघ के पथ पर चल, नया धम अपनाएं हम ।

मानव ही सबसे ऊचा है, नूतन राह बनाएँ हम ।।

तिलक की ज्वाला में अवलाए, क्यों घर-पर में झुलस रहीं ?

भरी जवानी में विधवाएँ, क्यों घर-घर में विलख रहीं ?

इस प्रश्न का समाधान क्या, दुनिया को समझाएँ हम । मानव

 

मंदिर-मस्जिद गुरुद्वारे ने गौण किया इंसान को,

दुनिया पूज रही केवल, धमों के देवस्थान को,

जिनकी अंखे बरस रही हैं, आयें, गले लगाए' हम । मानव'

 

धर्म न बाईबिल, धर्म न पूजा, धर्म न बेद कुरान में,

धर्म न मस्जिद् की ईटों में, धर्म न देवस्थान में,

धर्म मानवता की भाषा है, यही धमें अपनाए हम । मानव'

 

लाखों मंदिर लाखों मस्जिद्, फिर भी खून की होली क्यों ?

लाखों लाखों देव जहाँ हैं, मानवता फिर रोती क्यों ?

छोड़ देव की चिन्ता भाई, सबको गले लगाए हम । मानव'

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