समाजोद्धार
संघ के पथ पर चल, नया धम अपनाएं हम ।
मानव ही
सबसे ऊचा है, नूतन राह बनाएँ हम ।।
तिलक की
ज्वाला में अवलाए, क्यों घर-पर में झुलस रहीं ?
भरी जवानी
में विधवाएँ, क्यों घर-घर में विलख रहीं ?
इस प्रश्न
का समाधान क्या, दुनिया को समझाएँ हम । मानव
मंदिर-मस्जिद
गुरुद्वारे ने गौण किया इंसान को,
दुनिया पूज
रही केवल, धमों के देवस्थान को,
जिनकी अंखे
बरस रही हैं, आयें, गले लगाए' हम । मानव'
धर्म न
बाईबिल, धर्म न पूजा, धर्म न बेद कुरान में,
धर्म न
मस्जिद् की ईटों में, धर्म न देवस्थान में,
धर्म मानवता
की भाषा है, यही धमें अपनाए हम । मानव'
लाखों मंदिर
लाखों मस्जिद्, फिर भी खून की होली क्यों ?
लाखों लाखों
देव जहाँ हैं, मानवता फिर रोती क्यों ?
छोड़ देव की
चिन्ता भाई, सबको गले लगाए हम । मानव'
No comments:
Post a Comment