कैसे जीते
ये इंसान कैसे जीते ये इंसान ।
पेट की
ज्वाला इन्हें सताती, हो जाते
हैरान ।
सड़कों का
जूठन खाकर तब करते अपना त्राण ।।
जिनके घर
में मौज उड़ाते, बिस्कुट
खाते श्वान ।
उनके कारण
सिसक सिसक कर जीते ये बेजान ॥
भूख नहीं
मिटती तो ये हो जाते हैं परेशान ।
पेट बाँधकर
सो जाते ये कोटि कोटि इन्सान ॥
नेता, सन्त न कोई मूल्ला देते इनपर ध्यान
।
हाय रे मानव, हाय री दुनिया, हाय रे हिन्दुस्तान।॥।
No comments:
Post a Comment