कैसा जग का
यह व्यवहार ।
हर पग पर
अपमानित होने को ये हैं लाचार ।
विस्तर साथी
का छूने पर देखो खाता मार ।
कितने प्रेम, कितनी मस्तो से मिलते ये सुकुमार ।
पावन प्रीति
को तोड़ रहा इन धनियों का संसार ।
बड़े-बड़े
धनसेठ जहां
कुत्तों से करते प्यार ।
पर मानव को
ये पापी देखा देते फटकार ।
अपने हित से
इनका मतलब नहीं किसी से प्यार ।
निर्मल बनते
ये शोषक पर सचमुच है हत्यार ।
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