बाबा जी ये मुझको क्या देते हैं मूषक ज्ञान,
प्रभु उन्हीं को मिलते देते जो चूहों को मान?
ध्यान नेत्र को थोड़ा हिला के निजआसान को जरा डुला के,
बाबाजी ने पाठ पठाया, मूषक गीता को समझाया।
बोले ध्यान में मूषक बाधा, कपड़ों को कर देते आधा,
पर इनसे तुम ना घबड़ाना, निज जिह्वा में प्रेम बसाना।
अपनी गलती थी ना माना, गुरु ज्ञान था कदर ना जाना,
मूषक के खाने के हेतु , बिल्ली थी एक जरिया सेतु।
फिर बिल्ली की जान बचाने, रोज रोज को दूध पिलाने,
ले आया था फिर एक गाय,वही समस्या वो ही हाय।
फिर गाय को घास चराने, समय समय पर उसे घुमाने,
ढूंढ ढांढ के लड़की लाया, प्रेम पाश में मैं पछताया।
चूहे का चक्कर कुछ ऐसा ,जग माया घनचक्कर जैसा।
मेरी बात सच है ये जानो, मूषक को युवती हीं जानो।
तब हीं बेड़ा पार लगेगा, मूषक ज्ञान से ध्यान सधेगा।
अजय अमिताभ सुमन
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