विजयी विश्व है चंडा डंडा,
ना लो रोटी से तुम पंगा।
जो पंगा ले आफत आए,
सोते जगते शामत आए,
कभी सांप को रस्सी समझे,
कभी नीम को लस्सी समझे,
ना कोई भी सूझे उपाए,
किस भांति रोटी आ जाए,
चाहे कैसा भी हो धंधा,
ना लो रोटी से तुम पंगा।
रोजी रोटी चले हथौड़े,
रोटी ने माथे बम फोड़े,
उड़ते बाल बचे जो थोड़े,
हौले हौले कर सब तोड़े,
काम ना आए कंघी कंघा,
तेल चमेली रजनी गंधा,
बस माथे पर दिखता चंदा,
ना लो रोटी से तुम पंगा।
रोजी रोटी सब मन भाए,
ना खाए जो जी ललचाए,
जो खाए तो जी जल जाए,
छुट्टी करने पर शामत है,
छुट्टी होने पर आफत है,
गर वेतन है तो जाफत है,
यही खुशी है यही है फंदा,
ना लो रोटी से तुम पंगा।
रोजी रोटी के चक्कर में,
कैसे कैसे बीन बजाते,
भैंस चुगाली करती रहती,
राग भैरवी मिल सब गाते,
माथे में ताले लग जाय,
बुद्धि मंदी बंदा मंदा ,
ना लो भाई इससे पंगा,
ना लो भाई इससे पंगा।
या दिल्ली हो या कलकत्ता,
सबसे ऊपर मासिक भत्ता,
आंखो पर चश्मे खिलता है,
चालीस में अस्सी दिखता है,
वेतन का बबुआ ये चक्कर ,
पूरा का पूरा घनचक्कर,
कमर टूटी हिला है कंधा,
ना लो भाई इससे पंगा।
विजयी विश्व है चंडा डंडा,
ना लो रोटी से तुम पंगा।
अजय अमिताभ सुमन
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