चूल्हा चौकी बरतन थाली,
रोटी दाल और चाय की प्याली,
बचपन बेड़ी में जकड़ा सा,
कुछ तो मिले इन्हें आज़ादी।
इनको भी तो ज्ञान दिला दो,
जीवन में कुछ जान दिला दो,
जन्म दिए हो बात ठीक पर,
थोड़ी तो पहचान दिला दो।
क्या मतलब बेटी का इतना,
गुड़िया की गुड्डे से शादी,
जैसे तैसे सेज सजा के,
इनसे बढ़ती रहे आबादी।
पर इनके भी हैं कतरो ना,
बेड़ी में तुम यूँ जकड़ो ना .
इस समाज के बंधन वंधन,
डालों ना इनको पकड़ो ना।
प्रभु नहीं करता है अंतर,
भेद भाव तुम क्यों करते हो ,
बेटा बेटी एक बराबर,
नहीं बात निज में गढ़ते हो।
गर बच्चे अम्बर गढ़ते है,
नए नए सपने गढ़ते है ,
मिले आजादी इनके पर भी,
देखो कैसे नभ चढ़ते हैं।
अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित
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