देशवा के
होई उद्धार हो, जब बहिनियाँ
ई पढिहें।
घरे घरे आई
बहार हो, जब बहिनियाँ
इ जगिहें ।
घर के
बनईहैं, वहरवो
सजइहें ,
बिगड़ल
दुनिया के रहिया बतइहें ।
हो जाई
देशवा के सिंगार हो, जब बहिनियाँ
इ बुझिहें ।
घरे घरे" घरवा में ज्ञानअ के दीया जलइहें,
बाहर में दुनिया
के दुखवा मिटइहें ।
मिट जाई
सगरो अन्हार हो, जब बहिनियाँ
इ चहिहें ।
घरे घरे कोमल कलाई खाली पेन्ही ना कंगनवा,
देशवा के
भाग लिखी हाथ के कलमवा।
"आशावादी, के वा इहे पूकार हो, इ बहिनियाँ ना डरिहें । घरे घरे"
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