गुरू गोविंद
यदि दीख पड़ें
तो किसको
शीश नवाऊँ मैं ।
कहा कबीर ने
सबसे पहले
गुरू को शीश
झुकाऊँ मैं ।
मन के नभ
में छाये रहता है
अज्ञान
अंधेरा रे,
शिक्षक ही
रवि बनकर के
फैला देता
उजियारा रे,
भक्ति
उमड़ती मेरे दिल में,
उनके चरण
दबाऊँ मैं । कहा...........
हम सब गुरु
की देन जगत में,
हो छोटा या
बड़ा भी रे,
सब की आँखे
खोल सीखाता,
अपना हो या
पराया रे,
'आशावादी' कहते भाई,
गुरु से नेह
लगाऊँ मैं । कहा...........
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