जुन से भी आफत जुलाई महीना।
पानी से राहत अब मिलता कहीं ना।
बादल इस मौसम में आए हुए हैं।
कीचड़ हीं सड़कों पर छाए हुए हैं।
सब्जी दुकानों पर आफत है छाई।
चावल भी लेने को शामत है भाई।
कपड़े सुखाने को जाएं कहाँ पर।
टपटपटप बूँदें आ जाती है छत पर।
भींगा है मौसम ना सुखता पसीना।
जुन से भी आफत जुलाई महीना।
अजय अमिताभ सुमन
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