Wednesday, November 6, 2024

क्यों दूँ खुद को मैं विश्राम


अथक परिश्रम नहीं आराम। 
ना कर्मों को अल्प विराम। 
कोर्ट केस के झगड़े सारे। 
सुलझाने कई ल फड़े सारे। 
मन में जो भी भाव हैं फलते। 
गीत, कहानी, कविता गढ़ते। 
और बढ़ानी भी निज आय। 
संपन्नता का बनूँ पर्याय। 
कई अधूरे नाम गिना दूँ। 
सोने पर विश्राम लगा दूँ। 
समय है कम और ज्यादा काम। 
क्यों दूँ खुद को मैं विश्राम। 

अजय अमिताभ सुमन

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