एक किरण ,
चैतन्य के प्रकाश पर,
बिखरी हई,
मात्र एक किरण।
क्या हूं मैं?
एक लहर,
परम ब्रह्म के,
असीमित सागर में,
बनती हुई,
मिटती हुई,
एक लहर।
क्या हूं मैं?
एक झोंका,
हवा का,
अनंत ईश्वर के,
आकाश में।
इतराती हुई,
बल खाती हुई,
मुस्कुराती हुई,
लहराती हुई,
ईठलाती हुई,
मिट जाती हुई।
एक हिस्सा,
अदना सा हिस्सा,
इस असीमित, अनंत,
आकाश का,
सागर का,
प्रकाश का।
अनजान,
इस बात से अनजान,
कि इन लहरों के,
झोकोँ के,
या किरणों के ,
बनने का या मिटने का।
ना तो हर्ष हीं मनाता है,
ये चैतन्य ,
ये सागर,
ये आकाश,
ये प्रकाश,
और ना शोक हीं।
अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित
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