Friday, November 8, 2024

दुखवा के वतिया

दुखवा के वतिया, लिखत बानी पतिया में ,

लोरवा गिरेला दिन रतिया सहेलिया।

 

लगन देखि शादी भइल, पोथियो भी झूठ भइल,

धूल में सोहाग मिल गइल रे सहेलि वा।

मइल कुचइल जब, कपड़ा पहीनी तब

लोग कहे हमरा के फूहड़ रे सहेलिया।

 

साफ सुथड़ जब रहीं, लोग हंसे कही-कही,

इत अब मन के बिगड़ लस सहेलिया ।

घर आ बहरवा के, बिगड़ल लोगवा के,  

बुरा बाटे हम पर निगाहवा सहेलिया।

 

दुनिया के रीति नीति, देखि देखि हम सोचीं,

 मन के लगाम टूटि जाई रे सहेलिथा ।

गोतिनी-देयादिनी के, अपना पिया के संगे,

देखि हिया हहरेला हमरो सहेलिया।

 

मन के पियास जब, हमके सतावे तब ,

कइसहूँ इज्जत बचाई रे सहेलिया ।

लाजबा के बतिया हम, लिखीं कइसे पतिया में,

दुनिया के मरमो ना जननी सहेलिवा ।

 

जिनगी के आपन पोल, केतना दीं हम खोल,

घर में ना कुतियो के मोल रे सहेलिया।

गोदंवा में रहिते जे, एकोगो बालकवा त,

मन ओकरे में मन अझुरइतीं सहेलिया।

 

बाकिर गोद बाटे सूनअ, सोची सोची सूखे खून,

जिनगी में खाली बा अन्हारे रे सहेलिया।

कुहुकि कुहुकि चिरई, पिजड़ा में जीय तारी,

ब्याध इ समाज गोलिया मारे रे सहेलिया |

 

पतिया के बात सखी, माई से तू जनि कहिहब,

कह दीहअ बेटी नीके बारी रे सहेलिया।

अखिया के लोरवा त, लेपलस अक्षरवा के ,

धीरज धके टोई टोई पढ़िह सहेलिया ।

 

श्री नाथ आशावादी, लिखत में लोर झड़े,

विधवा के दरद सुनावे रे सहेलिया ।

 


No comments:

Post a Comment

My Blog List

Followers

Total Pageviews