Wednesday, November 6, 2024

लकड़बग्घे से नहीं अपेक्षित

लकड़बग्घे से नहीं अपेक्षित
प्रेम प्यार की भीख,
किसी मीन से कब लेते हो
तुम अम्बर की सीख?
लाल मिर्च खाये तोता
फिर भी जपता हरिनाम,
काँव-काँव ही बोले कौआ
कितना खाले आम।
डंक मारना ही बिच्छू का
होता निज स्वभाब,
विषदंत से ही विषधर का
होता कोई प्रभाव।
कहाँ कभी गीदड़ के सर तुम
कभी चढ़ाते हार?
और नहीं तुम कर सकते हो
कभी गिद्ध से प्यार?
जयचंदों की मिट्टी में ही
छुपा हुआ है घात,
और काम शकुनियों का
करना होता प्रति घात।
फिर अरिदल को तुम क्यों
देने चले प्रेम आशीष?
जहाँ-जहाँ शिशुपाल छिपे हैं
तुम काट दो शीश।

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