आओ एक किस्सा बतलाऊँ,
एक माता की कथा सुनाऊँ,
कैसे करुणा क्षीरसागर से,
ईह लोक में आती है?
धरती पे माँ कहलाती है।
स्वर्गलोक में प्रेम की काया,
ममता, करुणा की वो छाया,
ईश्वर की प्रतिमूर्ति माया,
देह रूप को पाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
ब्रह्मा के हाथों से सज कर,
भोले जैसे विष को हर कर,
श्रीहरि की वो कोमल करुणा,
गर्भ अवतरित आती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
दिव्य सलोनी उसकी मूर्ति ,
सुन्दरता में ना कोई त्रुटि,
मनोहारी, मनोभावन करुणा,
सबके मन को भाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
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मम्मी के आँखों का तारा,
पापा के दिल का उजियारा,
जाने कितने ख्वाब सजाकर,
ससुराल में जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
नौ महीने रखती तन में,
लाख कष्ट होता हर क्षण में,
किंचित हीं निज व्यथा कहती,
सब हँस कर सह जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
किलकारी घर में होती फिर,
ख़ुशियाँ छाती हैं घर में फिर,
दुर्भाग्य मिटा सौभाग्य उदित कर,
ससुराल में लाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
जब पहला पग उठता उसका,
चेहरा खिल उठता तब सबका,
शिशु भावों पे होकर विस्मित ,
मन्द मन्द मुस्काती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
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बालक को जब क्षुधा सताती,
निज तन से हीं प्यास बुझाती,
प्राणवायु सी हर रग रग में,
बन प्रवाह बह जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
माँ की ममता अतुलित ऐसी,
मरु भूमि में सागर जैसी,
धुप दुपहरी ग्रीष्म ताप में,
बदली बन छा जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
नित दिन कैसी करती क्रीड़ा,
नवजात की हरती पीड़ा,
बौना बनके शिशु अधरों पे,
मृदु हास्य बरसाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
माँ हैं तो चंदा मामा है,
परियाँ हैं, नटखट कान्हा है,
कभी थपकी और कभी कानों में,
लोरी बन गीत सुनाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
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रात रात भर थपकी देती,
बेटा सोता पर वो जगती ,
कई बार हीं भूखी रहती,
पर बेटे को खिलाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
जीवन के दारुण कानन में,
अतिशय निष्ठुर आनन में,
वो ऊर्जा उर में कर संचारित,
प्रेमसुधा बरसाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
यदा कदा भूखी रह जाती,
पर बच्चे की क्षुधा बुझाती ,
पीड़ा हो पर है मुस्काती ,
नहीं कभी बताती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
शिशु मोर को जब भी मचले,
दो हाथों से जुगनू पकड़े,
थाली में पानी भर भर के,
चाँद सजा कर लाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
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तारों की बारात सजाती,
बंदर मामा दूल्हे हाथी,
मेंढ़क कौए संगी साथी,
बातों में बात बनाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
छोले की कभी हो फरमाइस ,
कभी रसगुल्ले की हो ख्वाहिश,
दाल कचौड़ी झट पट बनता,
कभी नहीं अगुताती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
दूध पीने को ना कहे बच्चा,
दिखलाए तब गुस्सा सच्चा,
यदा कदा बालक को फिर ये,
झूठा हीं धमकाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
बेटा जब भी हाथ फैलाए ,
डर के माँ को जोर पुकारे ,
माता सब कुछ छोड़ छाड़ के ,
पलक झपकते आती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
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बन्दर मामा पहन पजामा ,
ठुमक के गाये चंदा मामा ,
कैसे कैसे गीत सुनाए ,
बालक को बहलाती है
धरती पे माँ कहलाती है।
रोज सबेरे वो उठ जाती ,
ईश्वर को वो शीश नवाती,
आशीषों की झोली से,
बेटे को सदा बचाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
कभी धुल में खेले बाबू ,
धमकाए ले जाए साधू ,
जाने कैसे बात बता के ,
बाबू को समझाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
जब ठंडक पड़ती है जग में ,
तीक्ष्ण वायु दौड़े रग रग में ,
कभी रजाई तोसक लाकर ,
तन मन में प्राण जगाती है ,
धरती पे माँ कहलाती है।
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