Wednesday, November 6, 2024

अपने हृदय की पीड़ कहो किससे सुनाऊँ मैं

 

अपने हृदय की पीड़ कहो किससे सुनाऊँ मैं ।

इस जिन्दगी की टीस कहो कैसे मिटाऊँ मैं ।

मृदु कल्पना संजोये रख क्या सोचता क्या हो रहा,

जीवन की टेढ़ी राह में चल मैं अभागा रो रहा,

कैसे जिन्दगी की डूबती नैया बचाउ मैं । अपने

 

जो निष्कलुष कहता सदा निज को जगत के बीच में,

सारा जगत को फेंकता वह स्वार्थ के क्यों कीच में,

कैसे छलभरी दुनिया से अपने को बचाऊँ मैं । अपने

 

दुनिया भुलावा सी नजर में दिखती है क्यों मुझे,

अपना जिसे समझू वही बरबाद करता क्यों मुझे,

शुभचिन्तकों से अपने को कैसे बचाऊँ मैं । अपने

 

सोचा था दुनिया प्रेम की सरिता बहाएगी सदा,

मुझे प्यार पाने की सर्वत्र बहाए आएगी सदा,

पर यह था मेरा भ्रम किसे अपना बनाऊँ मैं । अपने'

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