बड़ी मुश्किल थी राह , गुजर चूका हूँ मैं ,
ये भी क्या कम है कि , सुधर चूका हूँ मैं।
मिला नहीं इरम तो फिकर नहीं है मुझको ,
हूँ भूख से मैं हैरान , बिफर चूका हूँ मैं।
ले जाओ तुम ये राहें वो जन्नत के नक्शे,
कई बार हीं चला पर उजड़ चुका हूँ मैं।
सह ना सकेंगी आँखे, चिरागों की रोशन,
अंधा हुआ था कब का उबर चूका हूँ मैं।
अजय अमिताभ सुमन
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