Wednesday, November 6, 2024

आहट


आहट

गर्मी की लहरें क्या आफत बड़ी थी, 
तपती दुपहरी में शामत पड़ी थी। 
खिड़की से आती थी लू की वो लपटें, 
जी को बस ठंडक की चाहत बड़ी थी। 
जरूरी नहीं कि लू लहरी कुछ नम हो, 
इतना हीं काफी कि गर्मी कुछ कम हों। 
बारिश जो आई है ठंडक जो लाई है 
मेघों की आहट से राहत बड़ी थी। 

अजय अमिताभ सुमन

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