एक हाथ में चक्र हैं जिनके मुरली मधुर बजाते हैं,
गोवर्धन धारी डर कर भगने का खेल दिखातें है।
जैसे गज शिशु से कोई डरने का खेल रचाता है,
कारक बन कर कर्ता का कारण से मेल कराता है।
ऐसे शक्ति पुंज कृष्ण जब शिशुपाल मस्तक हरते थे,
जितने सारे वीर सभा में थे सब चुप कुछ ना कहते थे।
राज सभा में द्रोण, भीष्म थे कर्ण तनय अंशु माली,
एक तथ्य था निर्विवादित श्याम श्रेष्ठ सर्व बल शाली।
वो व्याप्त है नभ में जल में चल में थल में भूतल में,
बीत गया जो पल आज जो आने वाले उस कल में।
उनसे हीं बनता है जग ये वो हीं तो बसते हैं जग में,
जग के डग डग में शामिल हैं शामिल जग के रग रग में।
कंस आदि जो नरा धम थे कैसे क्षण में प्राण लिए,
जान रहा था दुर्योधन पर मन में था अभि मान लिए।
निज दर्प में पागल था उस क्षण क्या कहता था ज्ञान नही,
दुर्योधन ना कहता कुछ भी कहता था अभिमान कहीं।
गिरिधर में अतुलित शक्ति थी दुर्योधन ये जान रहा,
ज्ञात कृष्ण से लड़ने पर क्या पूतना का परिणाम रहा?
श्रीकृष्ण से जो भिड़ता था होता उसका त्राण नहीं ,
पर दुर्योधन पर मद भारी था लेता संज्ञान नहीं।
अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित
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