है तथ्य विदित ये क्रोध अगन उर में लेकर हीं जलता था ,
दुर्योधन के अव चेतन में सुविचार कब फलता था।
पर निज स्वार्थ सिद्धि को तत्तपर रहता कौरव कुमार,
वक्त पड़े तो कुटिल बुद्धि युक्त करता था व्यापार।
राजसभा में जिस दुर्योधन ने सबका अपमान किया,
वो ही वक्त के पड़ने पर गिरिधर की ओर प्रस्थान किया।
था किशन कन्हैया की शक्ति का दुर्योधन को भान कहीं,
इसीलिए याचक बनकर पहुंचा तज के अभिमान वही।
अर्जुन ईक्छुक मित्र लाभ को माधव कृपा जरूरी थी,
पर दुर्योधन याचक बन पहुँचा था क्या मजबूरी थी?
शायद केशव को जान रहा तभी तो वो याचन करता था,
एक तरफ जब पार्थ खड़े थे दुर्योधन भी झुकता था।
हाँ हाँ दुर्योधन ब्रजवल्लभ माधव कृपा का अभिलाषी ,
जान चुका उनका वैभव यदुनन्दन केशव अविनाशी।
पर गोविन्द भी ऐसे ना जो मिल जाए आडम्बर से,
किसी झील की काली मिट्टी छुप सकती क्या अम्बर से।
दुर्योधन के कुकर्मों का किंचित केशव को भान रहा,
भरी सभा में पांचाली संग कैसा वो दुष्काम रहा।
ब्रजवल्लभ को याद रहा कैसा उसने आदेश दिया,
प्रज्ञा लुप्त हुई उसकी कैसा उसने निर्देश दिया।
अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित
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