Thursday, July 8, 2021

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-5

कभी गोपी के वस्त्र चुराकर मर्यादा के पाठ पढ़ाए,
पांचाली के वस्त्र बढ़ाकर चीर हरण से उसे बचाए।
इस जग को रचने वाले कभी कहलाये थे माखनचोर,
कभी गोवर्धन पर्वत धारी कभी युद्ध तजते रणछोड़।

जब  कान्हा के होठों पे  मुरली  गैया  मुस्काती थीं,
गोपी सारी लाज वाज तज कर दौड़े आ जाती थीं।
किया  प्रेम  इतना  राधा  से कहलाये थे राधेश्याम,
पर भव  सागर तारण हेतू त्याग  चले थे राधे धाम।

पूतना , शकटासुर ,तृणावर्त असुर अति अभिचारी ,
कंस आदि के मर्दन कर्ता कृष्ण अति बलशाली।
वो कान्हा थे योगि राज पर भोगी बनकर नृत्य करें,
जरासंध जब रण को तत्पर भागे रण से कृत्य रचे।

सारंग धारी कृष्ण हरि ने वत्सासुर संहार किया ,
बकासुर और अघासुर के प्राणों का व्यापार किया।
मात्र तर्जनी से हीं तो गिरि धर ने गिरि उठाया था,
कभी देवाधि पति इंद्र को घुटनों तले झुकाया था।

जब पापी कुचक्र रचे तब हीं वो चक्र चलाते हैं,
कुटिल दर्प सर्वत्र फले तब दृष्टि वक्र उठाते हैं।
उरग जिनसे थर्र थर्र काँपे पर्वत जिनके हाथों नाचे,
इन्द्रदेव भी कंपित होते हैं नतमस्तक जिनके आगे।

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित

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