घर छोड़ चला, मुँह मोड़ चला, मुँह मोड़ चला बुढ़ा दगाबाज निकला। दुख छोड़ चला, सुख मोड़ चला, सुख मोड़ चला बुढ़ा दगाबाज निकला।
ट्रेन द्रुत गति से दौड़ी चली जा रही थी। बाबा इस गाने को गुनगुनाते हुए आनंद के सागर में गोते लगा रहे थे। सारे यात्री बाबा से गुढ़ रहस्य जानना चाह रहे थे। काफी अनुनय विनय के बाद उन्होंने कुंडली के गुढ़ रहस्य का उद्घाटन करना शुरू किया।
एक एक करके उन्होंने तंत्र, मंत्र, योग और साधना के आयामों को खोलना किया। सारे यात्री किंकर्तव्यविमूढ़ होकर बाबा से कुंडली का रहस्य सीखने को तत्पर थे।
इधर ट्रेन स्टेशनों पे रुकती, फिर बढ़ जाती। बाबा बीच बीच मे गाने को गुनगुनाने लगते। फिर रहस्य खोलने में लग जाते। यात्रियों के चेहरे पे विस्मय का भाव ज्यों का त्यों बना हुआ था।
एक नन्हे से बच्चे ने उस प्रवचन की श्रृंखला को तोड़ डाला। अब केवल ट्रेन की आवाज ही सुनाई पड़ रही थी। ट्रेन में सन्नाटा था।
बच्चे ने पूछा था , बाबा आपकी कौन सी कुंडली जगी हुई है?
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