राजेश एक वकील के पास ड्राईवर था। पिछले पाँच दिनों से बीमार था। पगार देने वक्त साहब ने बताया कि ओवर टाइम मिलाकर और पांच दिन बीमारी के पैसे काटकर उसके 9122 रूपये बनते है। राजेश के ऊपर पुरे परिवार की जिम्मेवारी थी।मरता क्या ना करता।उसने चुप चाप स्वीकार कर लिया। साहब ने उसे 9100 रूपये दिए। पूछा तुम्हारे पास 78 रूपये खुल्ले है क्या? राजेश के पास खुल्ले नहीं थे।मजबूरन उसे 9100 रूपये लेकर लौटने पड़े।
उसने रिक्शा लिया और घर की तरफ चल पड़ा।घर पहुंच कर रिक्शेवाले को 100 रूपये पकड़ा दिए।रिक्शेवाले के पास खुल्ले नहीं थे। रिक्शेवाले ने कोशिश की पर खुल्ले नही मिले।आखिर में रिक्शा वाले ने वो 100 रुपये राजेश को लौटा दिए।
राजेश को अपने साहब की बात याद आने लगी। बोल रहे थे, मेरा मकान , मेरी मर्सिडीज बेंज सब तो यहीं है। तुम्हारे 22 रूपये बचाने के लिए अपने घर और अपने मर्सिडीज बेंज को थोड़े हीं न बेच दूंगा। एक ये रिक्शा वाला था जिसने खुल्ले नहीं मिलने पे अपना 10 रुपया छोड़ दिया और एक उसके साहब थे जिन्होंने खुल्ले नहीं मिलने पे उसके 22 रूपये रख लिए।
ये बात राजेश को समझ आ गयी। मर्सिडीज बेंज पाने के लिए पहली शर्त है साहब की तरह दिल से गरीबी को पकड़ना। ज्यादा बड़ा दिल रख कर क्या बन लोगे, महज एक रिक्शे वाला।
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