Friday, January 31, 2025

ना तख़्त की चाह

 ना तख़्त की चाह

ना तख़्त की चाह, ना ताज की आरज़ू,
ना नाम की हसरत, ना नाज़ की आरज़ू।

लफ़्ज़ कहीं दिल में, दफ़्न ना हो जाएँ,
मैं लिखता हूँ बस, आवाज़ की आरज़ू।

रूह की तन्हाई में, जलते हैं ख़्वाब सब,
शेर कहूँ दिल की, परवाज़ की आरज़ू।

दुनिया के सौदे में, बिकता नहीं सुकून,
मुझे चाहिए बस, एजाज़ की आरज़ू।

अजय अमिताभ सुमन

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