Monday, December 23, 2024

वो ईश्वर का लोभ

 

वेश्यावृति व्यसन से अकुलित पीड़ित और परेशान,
व्यथित स्त्री ने आखिर में काटे निज पति के कान।

पति ग्रसित संताप से अतिशय,पकड़ाने जाने के भय से,
रात भाग के पहुंचा गाँव, जहाँ नही कोई था परिचय।

बैठा फिर वृक्ष के नीचे,अविचल,अचल,दृढ कर निश्चय,
विस्मय फैला गाँव में ऐसे,आया कोई शक्तिपुंज अक्षय।

हे ज्ञानी हे पुरुष महान,अब तो तोड़ो अपने ध्यान,
यदि पाया है ईश्वर तूने ,जरा बता दो वो विज्ञान।

कहा पुरुष ने विषय गुप्त है, पर योगी ये अति तुष्ट है,
यही कान है आधा बाधा , तेरे कान से ईश्वर रुष्ट है।

सब व्यसनों का यही है मूल, प्रभु राह का काँटा शूल,
अभी कली हो,अविकसित हो,बन सकते हो तुम सब फुल।

ओ संसारी, ओ व्यापारी, ओ गृहस्थ, भोले नादान,
परम ब्रह्म तो मांगे तुमसे, तेरे कानों के बलिदान।

सुन सज्जन की अमृत वाणी , मंद बुद्धि , भोले औ ज्ञानी,
कटा लिए फिर सबने कान ,क्या निर्बल और क्या अभिमानी।

पर ईश्वर ना मिला किसी को ,ज्ञात हुआ न फला किसी को,
अधम के मुख पे थी मुस्कान,जो विश्वासी छला उसी को।

कर्ण क्षोभ से मिलती पीड़ा और केवल मिलता उपहास,
तुम औरो को भी ला पकड़ो, गर इक्छित ना हो जग हास।

मन में लेके अतिशय पीड़ा और ले दिल में हाय,
गाँव वाले सब निकल पड़े, ना देख के और उपाय।

कन-कटों की बढ़ी भीड़ तब, वो ईश्वर का लोभ,
इसी तरह धरती पे होती नए धर्म की खोज।


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