Saturday, December 14, 2024

हमदर्द अभी आजतक

 आजादी से पहले, आजादी से आज तक,

बदलते रहे ईलाज, पर मर्ज वही आज तक।
ये मुल्क है जनाब, थे एक नहीं कल भी ,
हाँ अब भी बिखरे हुए, कि दर्द वही आजतक।
बात यूँ हीं ना थी कि बस , लकीर खींच गई ,
सीने में जो चुभन थी , कि जर्द वही आजतक।
कभी जात कभी धर्म कि, बनती रहीं दीवारें,
मिल न सका मुल्क का , हमदर्द अभी आजतक।
टुकड़े हुए थे देश के,जिस शक ओ शुबहा पर,
जमा हुआ है रूह में , वो गर्द अभी आज तक।
जिन्हें देना था दर्द दे , मुल्क से रुखसत हुए ,
अफ़सोस ढ़ो रहे हैं वो , सरदर्द अभी आजतक।
बात यूँ है अमन की , मिट गया जो भी चला ,
रह गया है बाकी वो, कर्ज अभी आज तक।

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