Tuesday, December 17, 2024

अज्ञानता की जंजीर में

 अज्ञानता की जंजीर में,

जकड़े हुए मन हैं जो।

माया भ्रमित जर्जरता में,

पकड़े हुए तन हैं जो।

 

अकारण डरे हुए जो,

स्वयं से भयभीत हैं।

अनभिज्ञ हैं सत्य से जो,

स्वयं विस्म्रित हैं।

 

अनगिनत जो जी रहे हैं,

अपने कब्रिस्तान में।

स्वयं निर्मित जाल में,

स्वयं के अज्ञान में।

 

नचिकेता के सदृश ही,

इन्हें जीवन दान दो,

मृतप्राय ही जीवित है,

प्रभु अभय ज्ञान दो।

 

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