लाख टके की बात है भाई,सुन ले काका,सुन ले ताई।
बाप
बड़ा ना बड़ी है माई, सबसे
होती बड़ी लुगाई।
जो
बीबी के चरण दबाए , भुत
पिशाच निकट ना आवे।
रहत
निरंतर पत्नी तीरे, घटत
पीड़ हरहिं सब धीरे।
जो नित उठकर शीश झुकावै,तब जाकर घर में सुख
पावै।
रंक,राजा हो धनी या
भिखारी, महिला
हीं नर पर है भारी।
जेवर
के जो ये हैं दुकान ,गृहलक्ष्मी
के बसते प्राण।
ज्यों
धनलक्ष्मी धन बिलवावे, ह्रदय
शुष्क को ठंडक पावे।
सुन नर बात गाँठ तू धरहूँ ,सास ससुर की सेवा
करहूँ।
निज
आवे घर साला साली , तब
बीबी के मुख हो लाली।
साले
साली की महिमा ऐसी, मरू
में हरे सरोवर जैसी ।
घर
पे होते जो मेहमान , नित
मिलते मेवा पकवान ।
जबहीं बीबी मुंह फुलावत ,तबहीं घर में विपदा
आवत।
जाके
चूड़ी कँगन लावों , राहू
केतु को दूर भगावो।
मुख
से जब वो वाण चलाये,और
कोई न सूझे उपाय ।
दे
दो सूट और दो साड़ी , तब
टलती वो आफत भारी।
कहत कवि बात ये सुन लो , बीबी की सेवा मन गुन
लो।
भौजाई
से बात ना कीन्हों ,परनारी
पर नजर ना दीन्हों।
इस
कविता को जो नित गाए,सकल
मनोरथ सिद्ध हो जाए।
मृदु
मुख कटु भाषी का गुलाम ,कवि
करता इनका गुणगान।
No comments:
Post a Comment