हम जग से
जड़ता दूर भगा,
सर्वत्र
प्रभा फैलाएँगे।
जनगण के मन
से भेद मिटा,
धरती पर
स्वर्ग बसाएँगे ॥
जो अशन बिना
हैं तड़प रहे,
हैं वसन
बिना जो बिलख रहे,
दुख से जो
नयन हैं बरस रहे,
हम उनको गले
लगाएँगे। हम जग
सारी धरती
है घर अपना,
हर मानव
बन्धु बनें अपना,
समता का
पूरा हो सपना,
मन में भाव
जगाए गे । हम जग'
निर्बलों पर
अत्याचार न हो,
हिंसा का
स्थल संसार न हो,
बेबसों पर
अनाचार न हो,
हम ऐसा मार्ग बनाए गे । हम जग
बाधाए हमें
डराएगी,
सब रुढ़ियाँ
विघ्न उठाएगी,
दुनिया यह
हँसी उडाएगी,
पर कदम
बढ़ाते जाएगे । हम जग
भगवान खुदा
चाहें जो हों,
धमों की निज
राहें जो हों,
मतलब है
केवल मानव से,
मानवता सदा
सिखाए गे। हम जग
केवल मानवता
धर्म बने,
शोषण जग में
अधर्म बने,
जनहित जन का
सद्धर्म बने,
यह सबको पाठ
पढ़ाएँगे । हम जग"
हम प्रम
सूत्र में बँध जायें,
सब प्रगति
राह पर चल पाए",
आय, सब मिलकर के गाय,
समता का
ध्वज फहरायगे । हम
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