Monday, December 2, 2024

मदिरालय से दूरी कैसी

हे मित्र वर , हे प्रिय वर, 

हे मित्र वर , हे प्रिय वर।  


हे मित्र वर , हे प्रिय वर, 

कैसा ये आलाप प्रियवर। 

मदिरालय से दूरी कैसी,

कैसा नया प्रलाप प्रियवर। 


जो सुख मिल जाता तुमको,

मदिरा और मदिरालय में,

वो पुण्य नहीं मिल सकता है ,

प्रभु नेह , हरि आलय में? 


सुरा पान था तुझको प्रियकर, 

मदिरालय हीं तुझको ज्ञेय। 

प्रभु नाम से तुझे प्राप्त क्या, 

जो तुझको किंचित अज्ञेय। 


एक पैग से मिलता वो , 

जो ना मिलता है ईश्वर में, 

एक पैग से मिलते हैं दस, 

ईश्वर इस तन नश्वर में।


नहीं जरूरत योग ध्यान की,  

परम धाम मिलता झटपट है। 

इंद्र आदि सब मदिरा गामी,  

फिर क्यों मदिरा से खटपट है?


हे मित्र वर , हे प्रिय वर, 

हे मित्र वर , हे प्रिय वर।  


सुन कर ऐसी बात मित्र की, 

दूजे मित्र का डोला दिल। 

बोला आज हीं छोड़ी मदिरा, 

तुझे बताऊँ गले आ मिल। 


मेरे मित्र यूँ भी ना मुझपे, 

ऐसे तू संदेह करो। 

ना तू अष्टवक्र सा ज्ञानी, 

और ना मैं विदेह अहो। 


फिर भी मदिरालय का मैंने, 

स्वईक्षा परित्याग किया। 

ना कोई संताप है मन में, 

ना कोई वैराग्य लिया। 


सब धर्मों में सख्त मना है

मदिरा कर्म दुष्कर्म मना है, 

आज मेरी पर राह यही है, 

आज वक्त की चाह यही है। 


और नहीं पीने का कारण

मदिरा तुझे बताता हूँ,

अभी अभी तो आठ पैग ले,

मदिरालय से आता हूँ।


मदिरा मदिरालय से दुरी, 

एक मात्र दिन की हीं है। 

और नहीं पी सकता मदिरा, 

आज आठ पैग पी ली है। 


हे मित्र वर , हे प्रिय वर, 

हे मित्र वर , हे प्रिय वर।  


अजय अमिताभ सुमन

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