इस दहेज ज्वाला में कितनी सींताएँ जलती रहतीं ।
हाय रे मानव, हाय रे दूनिया, हाय रे भारत की धरती ॥
बेटी वाला
माँग करे तो बेटी बेचवा कहते हो,
पर बेटा
बेचने वालों की मान-प्रतिष्ठा करते हो,
पता नहीं
विपरीत धार क्यों गंगाजी की है बहती । हाय रे
कागज के
नोटों टी० बी० मोटर से मन न भरना है,
ईख पेर कर
रस चूसता ज्यों वैसा ही वह करता है,
एक नहीं
लाखों सीताएँ घुट-घुट कर तड़पा करतीं । हाय रे
पोथी गणना
और लग्न से सज धज शादी होती है,
गणपति, शिवजी, देव गान से कन्या पूजित होती है,
देन न कोई
रक्षा करता, बहएँ हैं जलती रहतीं । हाय रे
राजा राम
मोहन की धरती पर बहुएँ हैं जलती क्यों ?
दुख की बदली
नित्य इनकी आँखों में छाई रहती क्यों ?
एक समय
विधवा थी जलती, आज तो सधषा है जलती । हाय रे
ओ भाई, ओ बहन-माताओ ! आओ नूतन राह बनाएँ.
श्री नाथ
"आशावादी" कहते घर घर में अलख जगाएँ,
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