Wednesday, November 6, 2024

इस दहेज ज्वाला में कितनी सींताएँ जलती रहतीं

 इस दहेज ज्वाला में कितनी सींताएँ जलती रहतीं ।

हाय रे मानव, हाय रे दूनिया, हाय रे भारत की धरती ॥

 

बेटी वाला माँग करे तो बेटी बेचवा कहते हो,

पर बेटा बेचने वालों की मान-प्रतिष्ठा करते हो,

पता नहीं विपरीत धार क्यों गंगाजी की है बहती । हाय रे

 

कागज के नोटों टी० बी० मोटर से मन न भरना है,

ईख पेर कर रस चूसता ज्यों वैसा ही वह करता है,

एक नहीं लाखों सीताएँ घुट-घुट कर तड़पा करतीं । हाय रे

 

पोथी गणना और लग्न से सज धज शादी होती है,

गणपति, शिवजी, देव गान से कन्या पूजित होती है,

देन न कोई रक्षा करता, बहएँ हैं जलती रहतीं । हाय रे

 

राजा राम मोहन की धरती पर बहुएँ हैं जलती क्यों ?

दुख की बदली नित्य इनकी आँखों में छाई रहती क्यों ?

एक समय विधवा थी जलती, आज तो सधषा है जलती । हाय रे

 

ओ भाई, ओ बहन-माताओ ! आओ नूतन राह बनाएँ.

श्री नाथ "आशावादी" कहते घर घर में अलख जगाएँ,

समाजोद्धार संघ चीख रहा है-क्यों बहनें घुटती रहतीं । हाय रे "

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