सपनों को मुठ्ठी में करने, के सपने ना सोने देते।
साहब की आंखों को ऐसे,हीं सपने ना रोने देते।
ख्वाब नहीं ऐसे बनते हैं,सपने सच्चे बन फलते हैं।
इनके घर तब रोशन होता,जब गरीब जन जल पड़ते हैं।
बेशर्मी से सींच सींच कर, दिल से आंखे मींच मींच कर।
एक गरीब की आंखों में जो,दुख का दरिया दे देते,
वो ही साहब की आंखों में,पानी ना होने देते।
अजय अमिताभ सुमन
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