Wednesday, November 6, 2024

चिम्पू की ना खुले जुबान


कार में जाके कूद के चिम्पू,
जो बैठा धपाक,
खुली थी खिड़की सीट पर पानी,
पड़ने लगा छपाक।
गेट खोल के निकला चिम्पू ,
बटन खोल के निकला चिम्पू।
गुस्से में था आखं निकाले,
चीख चीख के बम फोड़ डाले।
किसकी शामत आई आज ,
किसकी ऐसी है औकात?
कौन है अंधा आँख नहीं हैं ,
बुद्धि की कोई बात नहीं है ?
कौन है ऐसा पाठ पढ़ा दूँ,
चलते कैसे ज्ञात करा दूँ ?
शोर सुन के आए ताऊ ,
पूछे किसकी हलक दबाऊ?
किसकी चर्बी आज चढ़ी है ?
बुद्धि किसकी आज बुझी है ?
देख के आगे एक पहलवान ,
चिम्पू की ना खुले जुबान।
अकल घुमाई जोर लगाया,
तब जाके कुछ समझ में आया।
बोला क्या कहते हैं ताऊ,
कार थी गन्दी कामचलाऊ।
कैसा ये शुभकाम हुआ है ,
मेरे कार का नाम हुआ है।
चमचम गाड़ी चमचम सीट,
और थोड़ा पानी दें छीट ।

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