Wednesday, November 6, 2024

काहे मन देह से नेह लगाए काहे मन देह से नेह लगाये

 

काहे मन देह से नेह लगाए काहे मन देह से नेह लगाये ।

इ देहिया माटी के मूरत, मिटिये में मिली जाए।

काँच बाँस के डोली सजा के, चार कहाँर उठाए ।

बेटा बेटौ सगा सम्बन्धी सिर धुनि लोर बहा ए ।

रोवत दुनिया, छोड़ देहिया, अगिया में जल जाए ।

मन इ हरिणिया माया जाल में, लोभवा से फैस जाए ।

कवनो जुगुतिया काम न आवे, जाल से निकल न पाए ।

काम, क्रोध, धन, लोभ में पड़के, सपना के महल सजाए ।

"आशावादी" अपने मन के रोज रोज समझाए ।

 

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