काहे मन देह
से नेह लगाए काहे मन देह से नेह लगाये ।
इ देहिया
माटी के मूरत, मिटिये में मिली जाए।
काँच बाँस
के डोली सजा के, चार कहाँर उठाए ।
बेटा बेटौ
सगा सम्बन्धी सिर धुनि लोर बहा ए ।
रोवत दुनिया, छोड़ देहिया, अगिया में जल जाए ।
मन इ
हरिणिया माया जाल में, लोभवा से फैस जाए ।
कवनो
जुगुतिया काम न आवे, जाल से निकल न पाए ।
काम, क्रोध, धन, लोभ में पड़के, सपना के महल सजाए ।
"आशावादी" अपने मन के रोज रोज
समझाए ।
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