Friday, November 8, 2024

जिधर देखता हूँ तू ही दिखाई पड़ती है

 

शेर-जिधर देखता हूँ तू ही दिखाई पड़ती है,

हर आवाज में तेरी बात सुनाई पड़ती है।

सच्च मानो, हे प्रिये, दूर होने से क्या,

हर मुस्कान में तेरी मुस्कान दिखाई पड़ती है।

गीत- पता नहीं क्यों याद तुम्हारी, मेरे दिल को सता रही है।

सच्च कहूँ ऐ मृदुभाषिणी, रसमय वाणी लुभा रही है ।

कितनी ही अबलाओं को इस धरती पर मैं देख रहा हूँ,

तनिक नहीं वे मन को भातीं, मन ही मन मैं सोच रहा हूँ,

पर छवि तेरी चाँद सी हे प्रिये,मन चकोर से लुभा रही है। पता .

सहनशीलता की देवी तू, रूप-गुण का भांडार हो तू,

सरस मधुरता सद्गुण का मैं सत्य कहूँ अवतार हो तू ,

चाँदनी सी मुस्कान तुम्हारी मन प्रसून को खिला रही है । पता "

खुश रहना हर क्षण हे सुन्दरी, यही भाव मन में मेरा,

तेरे सुख में ही बसता है जीवन का सब सुख मेरा,

प्रम के सपने में तेरी श्रद्धा की डोरी झुला रही है । पता

No comments:

Post a Comment

My Blog List

Followers

Total Pageviews