मैदान में शिकस्त की,
फिर से गुंजाइश हो,
उस शख्स के हौसले की,
फिर क्या आजमाइश हो?
कोई जीत भी जाए,
पर वो हारेगा क्या?
कि लड़खड़ाकर जिसको,
संभलने की ख्वाहिश हो।
अजय अमिताभ सुमन
इस ब्लॉग पे प्रस्तुत सारी रचनाओं (लेख/हास्य व्ययंग/ कहानी/कविता) का लेखक मैं हूँ तथा ये मेरे द्वारा लिखी गयी है। मेरी ये रचना मूल है । मेरे बिना लिखित स्वीकीर्ति के कोई भी इस रचना का, या इसके किसी भी हिस्से का इस्तेमाल किसी भी तरीके से नही कर सकता। यदि कोई इस तरह का काम मेरे बिना लिखित स्वीकीर्ति के करता है तो ये मेरे अधिकारों का उल्लंघन माना जायेगा जो की मुझे कानूनन प्राप्त है। (अजय अमिताभ सुमन: सर्वाधिकार सुरक्षित :Ajay Amitabh Suman:All Rights Reserved)
मैदान में शिकस्त की,
फिर से गुंजाइश हो,
उस शख्स के हौसले की,
फिर क्या आजमाइश हो?
कोई जीत भी जाए,
पर वो हारेगा क्या?
कि लड़खड़ाकर जिसको,
संभलने की ख्वाहिश हो।
अजय अमिताभ सुमन
आसां नहीं समझना हर बात आदमी के,
कि हंसने पर हो जाते वारदात आदमी के।
बुझते नहीं कफन से,अरमां दफ़न दफ़न से,
जलते हैं तन बदन से, आलात आदमी के।
कि दिन में है बेचैनी और रातों को उलझन,
संभले नहीं संभलते हालात आदमी के।
खुदा भी इससे हारा, इसे चाहिए जग सारा,
जग बदले पर बदले ना , जात आदमी के।
अजय अमिताभ सुमन