Sunday, October 29, 2023

गर भिन्नता स्वीकार ना हो


क्या भला हो देश का गर भिन्नता स्वीकार ना हो।

देश के उत्थान में व्यवधान है बाधा गरीबी।

धर्म जाति भिन्नता ना , विघ्न है ब्याधा गरीबी।

किन्तु इसका ज्ञान हो हाँ ,मेधा का अपमान हो ना।

धर्म जाति  प्रान्त आदि , एकता प्रतिमान हों हाँ।

ज्ञान, बुद्धि, प्रज्ञा शुद्धि, आ सभी में हम जगाएँ।

सूत्र हो अभिन्नता का ,साथ डग मिलकर बढ़ाएँ।   

इस वतन के देशवासी, प्रांत भिन्न वेश भाषा भाषी,

रूप जाति रंग भिन्न अब आ कहें पर एक हैं सब?

धर्म जाति तोड़ने का अब यहाँ हथियार ना हो।

क्या भला हो देश का गर भिन्नता स्वीकार ना हो।


अजय अमिताभ सुमन

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