Saturday, November 4, 2023

अनुसंधान सत का

कलतक जो जीवन जाना था,
है जीवन क्या अनजाना था। 
छद्म तथ्य  से  लड़ते लड़ते,
पथ  अन्वेषण  करते करते,
दिवस साल अतीत हुए कब,
हफ्ते मास व्यतीत  हुए जब,
जाना जो अब तक जाना था,
वो सत ना था पहचाना  था।
इस जग का तो कथ्य यही है,
जग  अंतर  नेपथ्य यही है,
जिसकी यहाँ प्रतीति होती ,
ह्रदय रूष्ट कभी प्रीति होती।
नयनों को  दिखता जो पग में,
कहाँ कभी टिकता वो जग में।
जग परिलक्षित बस माया है,
स्वप्न दृश्य सम भ्रम काया है,
मरू  में  पानी  दृष्टित  जैसे,
चित्त  में  सृष्टि  सृष्टित  वैसे,
जग भ्रम है अनुमान हो कैसे?
सत का  अनुसंधान  हो कैसे?

अजय अमिताभ सुमन 

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