Saturday, March 26, 2022

अफसोस शहीदों का


चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राज गुरु, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त, खुदी राम बोस, मंगल पांडे इत्यादि अनगिनत वीरों ने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में हंसते हंसते अपनी जान को कुर्बान कर दिया। परंतु ये देश ऐसे महान सपूतों के प्रति कितना संवेदनशील है आज। स्वतंत्रता की बेदी पर हँसते हँसते अपनी जान न्यौछावर करने वाले इन शहीदों को अपनी गुमनामी पर पछताने के सिवा क्या मिल रहा है इस देश से? शहीदों के प्रति  उदासीन रवैये को दॄष्टिगोचित करती हुई प्रस्तुत है मेरी  कविता "अफसोस शहीदों का"।

स्वतंत्रता का नवल पौधा, 
रक्त से निज सींचकर।
था बचाया देश अपना, 
धर कफन तब शीश पर।
.............
मिट ना जाए ये वतन कहीं , 
दुश्मनों की फौज से।
चढ़ गए फाँसी के फंदे , 
पर बड़े हीं मौज से।
...............
आज ऐसा दौर आया, 
देश जानता नहीं।
मिट गए थे जो वतन पे, 
पहचानता नहीं।
................
सोचता हूँ  देश पर क्यों , 
मिट गए क्या सोचकर।
आखिर उनको दे रहा क्या, 
देश बस अफसोस कर।
.................
अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित

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