Friday, December 4, 2020

मुल्क

जाति , धर्म, मजहब की पहचान  भी रखो,
अल्लाह जेहन में ठीक ,भगवान भी रखो।

एक  बाग़ किसी फूल के बाप का नहीं,
गुलाब उड़हुल ठीक है आम भी रखो।

पर ये क्या बात है  गली , नुक्कड़ एक से,
एक सी पोशाक एक सा मकान भी रखो।

दुनिया ये चीज ठीक है सच से  चलती नहीं,
झूठ है मुकम्मल पर थोड़ा ईमान भी रखो।

खुश हो रहे हो ठीक है  तुम जीत की जश्न में,
औरों की हार का का थोड़ा सा मान भी रखो।

ऐसे  हीं  ना राष्ट्र  कोई थोड़े  ना चलता है,
जेहन में मुल्क अपना हिंदुस्तान भी रखो।

अजय अमिताभ सुमन

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